• ईमानदार लकड़हारा •
एक समय की बात है, एक छोटे से गाँव के किनारे एक घना जंगल था। उस जंगल में एक गरीब लकड़हारा रहता था जिसका नाम हरि था। हरि बहुत ईमानदार और मेहनती व्यक्ति था। वह हर रोज़ जंगल में जाता और लकड़ियाँ काटकर उन्हें बेचकर अपनी जीविका चलाता था।
एक दिन, हरि जंगल में लकड़ियाँ काट रहा था। अचानक, उसकी कुल्हाड़ी फिसल कर पास के नदी में गिर गई। हरि बहुत परेशान हो गया, क्योंकि वह कुल्हाड़ी उसकी रोज़ी-रोटी का साधन थी। उसने बहुत कोशिश की, पर कुल्हाड़ी को पानी से निकाल नहीं पाया। दुखी होकर, हरि नदी के किनारे बैठकर रोने लगा।
उसकी सच्ची परेशानी और ईमानदारी देखकर, नदी के देवता प्रकट हुए। उन्होंने हरि से पूछा, "हे लकड़हारे, तुम क्यों रो रहे हो?"
हरि ने देवता को पूरी घटना बताई। देवता ने मुस्कुराते हुए कहा, "चिंता मत करो, मैं तुम्हारी कुल्हाड़ी निकाल दूंगा।" यह कहकर देवता नदी में डुबकी लगाई और जब वे ऊपर आए, तो उनके हाथ में एक सोने की कुल्हाड़ी थी। उन्होंने हरि से पूछा, "क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है?"
हरि ने सोने की कुल्हाड़ी देखकर कहा, "नहीं, यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है।"
देवता फिर से नदी में गए और इस बार वे एक चांदी की कुल्हाड़ी लेकर आए। उन्होंने फिर से पूछा, "क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है?"
हरि ने फिर से ईमानदारी दिखाई और कहा, "नहीं, यह भी मेरी कुल्हाड़ी नहीं है।"
आखिर में, देवता ने तीसरी बार नदी में डुबकी लगाई और इस बार वे हरि की लोहे की कुल्हाड़ी लेकर आए। उन्होंने पूछा, "क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है?"
हरि की आँखें चमक उठीं और उसने खुशी से कहा, "हाँ, यह मेरी कुल्हाड़ी है।"
देवता हरि की ईमानदारी से बहुत प्रसन्न हुए और बोले, "तुम्हारी ईमानदारी के लिए मैं तुम्हें यह सोने और चांदी की कुल्हाड़ियाँ भी उपहार में देता हूँ।" हरि ने धन्यवाद किया और खुशी-खुशी गाँव लौट आया। उसने सोने और चांदी की कुल्हाड़ियों को बेचकर अपने परिवार की सभी जरूरतें पूरी कीं और सुखी जीवन बिताने लगा।
शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि ईमानदारी हमेशा फलदायी होती है। चाहे परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो, हमें हमेशा सत्य और ईमानदारी का मार्ग ही अपनाना चाहिए।
Sandar
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